Wednesday 25 April 2018

विश्व मलेरिया दिवस आज: आर्थिक महाशक्ति बनते भारत को मच्छरों ने पछाड़ा


भारत कई देशों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया के नक्शे पर आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरने को तैयार है, लेकिन मच्छर ने उसे पछाड़ दिया है। आजादी के बाद से अब तक हम मच्छर के काटने से होने वाले मलेरिया पर काबू नहीं पा सके हैं। हर साल औसतन 18 लाख लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि पिछले 65 साल में कोशिशें नहीं की गईं, लेकिन संसाधनों की कमी के साथ-साथ मच्छरों के लगातार ताकतवर होने की वजह से इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो गया है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया मच्छर के आतंकसे परेशान हैं। उस पर दवाएं बेअसर होती जा रही हैं। यही नहीं जिंदा रहने के लिए वह अपनी ताकत में लगातार इजाफा भी करता जा रहा है। 
65 साल से चल रहीं कोशिश
-1953 में राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी 
-60 के दशक में बड़ी सफलता भी मिली थी 
इन राज्यों में समस्या ज्यादा 
-उड़ीसा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा और मेघालय और नॉर्थ ईस्ट के कई राज्यों में मलेरिया के ज्यादा मामले
--40% मामले भारत के अकेले ओडिशा से 
पूरी दुनिया परेशान 
-10 साल में पहली बार दुनिया में मलेरिया के मामलों में कमी नहीं आई 
-21.6 करोड़ मामले 91 देशों में सामने आए 2016 में 
-5 गुना ज्यादा बढ़ोतरी हुई 2015 की तुलना में 
80 फीसदी मामले अकेले भारत, इथियोपिया, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में पूरी दुनिया में 
कुछ सफलता भी हाथ लगी 
-2030 तक केंद्र सरकार ने देश को मलेरिया से मुक्त करने की योजना बनाई 
-15 राज्य मलेरिया मुक्त होने की कगार पर 
-11 राज्यों में मलेरिया के मामले कम हुए
-7 फीसदी मामले कम सामने आए मलेरिया के 2016 में पिछले साल की तुलना में 
-16 प्रतिशत की कमी आई मौत के मामलों में 
इसलिए मच्छर मारनाहुआ मुश्किल 
मच्छरदानी का तोड़ निकाला : 
5 फीसदी काटने के मामले मच्छरदारी के आने से पहले शाम 6 से 9 बजे के बीच 
15 फीसदी पहुंचा यह आंकड़ा मच्छरदानी के आने के बाद 
ये हुए बेअसर 
डीडीटी :
-डीडीटी के प्रयोग से भारत को मच्छरों से निपटने में सफलता मिली थी 
-1965 में मलेरिया के मामले घटकर महज 1000 रह गए थे 
-1976 में मगर फिर से देश में 64 लाख मामले दर्ज किए गए 
-डीडीटी के खतरनाक प्रभावों के चलते इसे कई देशों में प्रतिबंधित भी कर दिया गया। 
प्रिथ्रॉयड‌्स : 
-एक समय इसे काफी असरदायक दवा माना जाता था। 
-2000 में 100 करोड़ से ज्यादा मच्छरदानियों में इसे लगाया गया और अफ्रीका में बांटा। 
-इसका असर यह हुआ कि मच्छरों पर इसका असर कम होना शुरू हो गया। 
मलेरिया की दवाएं भी बेकार 
-क्लोरोक्विन दवा को बेहद सस्ता व असरदायक माना जाता था, लेकिन इसका असर भी खत्म हो गया है। 
-सल्फाडॉक्साइन प्रिमथिमाइन दवा भी अब मलेरिया पर काम नहीं कर रही है। 
फितरत  बदली 
-एक रिपोर्ट में दावा किया है कि मच्छरों ने रात के बजाय शाम को काटना शुरू किया 
-घर में कम से कम समय के लिए घुस रहे 
-घर के भीतर दवा छिड़कने वाली जगह पर बैठने से भी बच रहे 


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